शिक्षा प्रतिनिधि द्वारा
पूर्वी सिंहभूम. पूर्वी सिंहभूम के नक्सल फोकस एरिया गुड़ाबांधा प्रखंड के रेरूआ गांव के प्राथमिक विद्यालय के छात्र-छात्राओं को हर दिन तपती धूप में पानी के लिए दो चार होना होता है. यहां छात्र-छात्राओं को पानी के लिए हर दिन आधा किलोमीटर दूर गांव के जल मीनार तक जाना होता है. इन बच्चों में से किसी के बच्चे के पास एक लीटर पानी का बोतल तो किसी के पास आधा लीटर पानी का बोतल रहता. छात्र इन बोतलों में गले की प्यास बुझाने के लिए पानी भरकर अपने पास रखते हैं लेकिन जैसे ही बोतल की पानी खत्म फिर से हुए पैदल चलकर गांव की तरफ जाते हैं और फिर पानी लाते हैं. ऐसा स्कूल के समय में तीन से चार बार उन्हें पानी के लिये आना- जाना होता है.
बता दें, गुड़ाबांधा प्रखंड के रेरूआ प्राथमिक विद्यालय में पानी की किल्लत से बच्चे, शिक्षक और मध्याह्न भोजन बनाने वाली सईया को हर दिन परेशानियों का सामना करना पड़ता है. सबसे अधिक परेशानी स्कूल के बच्चों को है. बच्चे घर से पानी के बोतल तो लाते हैं, लेकिन बोतल की पानी समाप्त होने पर बच्चों को स्कूल से आधा किलोमीटर दूर गांव की जल मीनार से पानी लाना होता है.
गांव में कच्ची सड़कें हैं और इसपर गाड़ियों का आना जाना है. बच्चे 10-15 की संख्या में एक साथ पानी की बोतल लेकर स्कूल से निकलते हैं और गांव के जल मीनार से पानी भरने के बाद फिर उसी तरह एक साथ स्कूल आते हैं. इस तरह बच्चों को स्कूल के समय तीन से चार बार बोतल से पानी खत्म होने के बाद लाना होता है. मध्यान भोजन बनाने वाली सईया भी बताती है उन्हें हर दिन बच्चों का खाना पकाने के लिए आधा किलोमीटर दूर गांव के जल मीनार से ही पानी लाना होता है.
रेरूआ प्राथमिक विद्यालय में एक से आठ तक के बच्चे पढ़ते हैं. बच्चो की संख्या लगभग 150 है, स्कूल में एक चापकल है. लेकिन, पानी बदबुदार और मटमैला होने के कारण पीने लायक नहीं है. लॉकडाउन के बाद चापाकल भी खराब पड़े हैं. स्कूल के शिक्षक चंपाई हांसदा और शिक्षा समिति के अध्यक्ष बताते है कि चापाकल के लिये कई बार विभाग, जन प्रतिनिधि और प्रखंड के बीडीओ से गुहार लगा चुके हैं. स्कूल के बच्चे पानी के लिये बाहर जाने पर चिंता बनी रहती है, जब भी बच्चे पानी के लिए स्कूल से बाहर जाते हैं तो उनके साथ शिक्षक को भी जाना होता है क्या करें मजबूरी है. बच्चे दिन भर में दो से तीन बार पानी के लिए आते जाते हैं.
अब ऐसे में स्कूल परिसर में ही चापाकल और जल मीनार बनाने की जरूरत है. अगर स्कूल परिसर में सोलर जल मीनार चापाकल में लगा दिया जाए तो बच्चों को हर दिन स्कूल से आधा किलोमीटर दूर पैदल चलकर इस तपती धूप में पानी के लिए पसीना बहाने से छुटकारा मिल सकता है. लेकिन, अब तक ऐसा नहीं हो पाया है. घाटशिला के विधायक रामदास सोरेन से भी गांव के ग्रामीणों ने गुहार लगाई है कि स्कूल परिसर में एक चापाकल लगाया जाए , जल मीनार बनाया जाए ताकि बच्चों को पानी की समस्या से छुटकारा मिल सके.